अलविदा डॉ. मनमोहन सिंह… वो बातें जिनके लिए हमेशा याद किए जाएंगे पूर्व प्रधानमंत्री

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार रात निधन हो गया. वे 92 साल के थे. शनिवार सुबह शक्ति स्थल के पास उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. मनमोहन सिंह 2004 में देश के 14वें प्रधानमंत्री बने और मई 2014 तक इस पद पर दो टर्म रहे. वे देश के पहले सिख और चौथे सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे. वे 1991 से 1996 के बीच भारत के वित्त मंत्री भी रहे. आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति शुरू करने में उनकी भूमिका को दुनिया भर में आज भी सराहा जाता है.

देश गमगीन है. शोक की लहर है. देश को आर्थिक सुधारों की राह पर ले जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह हमारे बीच नहीं हैं. गुरुवार को उन्होंने 92 साल की उम्र में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में अंतिम सांस ली है. आज पूरे राजकीय सम्मान के साथ दिल्ली में शक्ति स्थल के पास उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. मनमोहन सिंह 2004 में देश के 14वें प्रधानमंत्री बने और मई 2014 तक इस पद पर दो टर्म रहे. वे देश के पहले सिख और चौथे सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे. सिंह 1991 से 1996 के बीच भारत के वित्त मंत्री भी रहे. आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति शुरू करने में उनकी भूमिका को दुनियाभर में आज भी सराहा जाता है.

1. देश में उदारीकरण लेकर आए थे मनमोहन सिंह

दुनियाभर में मनमोहन सिंह की पहचान ना सिर्फ एक बेहतरीन राजनेता की है, बल्कि इससे कहीं ज्यादा एक अर्थशास्त्री के रूप में भी होती है. जब भारतीय अर्थव्यवस्था डावांडोल थी, तब मनमोहन देश में उदारीकरण की लहर लेकर आए. देश की इकॉनोमी को पटरी पर लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है. उदारीकरण में बेहद अहम भूमिका निभाई और भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के लिए खोल दिया था.

मनमोहन सिंह का सार्वजनिक जीवन 1971 में शुरू हुआ, जब उन्होंने भारत सरकार में आर्थिक सलाहकार के रूप में काम करना शुरू किया. उसके बाद उन्होंने विभिन्न प्रशासनिक, शैक्षणिक और राजनीतिक पदों पर सेवाएं दीं. वे 2024 तक सक्रिय सार्वजनिक जीवन में रहे. मनमोहन सिंह पहली बार 1991 में राज्यसभा के लिए चुने गए थे. उन्होंने उच्च सदन में पांच बार असम और 2019 में राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया. हालांकि, जब उन्होंने 1999 में लोकसभा का चुनाव लड़ा तो निराशा हाथ लगी. 24 जुलाई 1991 को उन्होंने वित्त मंत्री की शपथ ली और अपने भाषण में ही वो पटकथा की झलक दिखाई, जिसका देश को बेसब्री से इंतजार था.

दरअसल, 90 के दशक में वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी और कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर की सरकार बनी. चंद्रशेखर ने डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री कार्यालय में आर्थिक सलाहकार का पद दिया. 1991 में चंद्रशेखर की सरकार भी गिर गई. उस समय UGC (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) के अध्यक्ष का पद खाली था. ऐसे में डॉ. सिंह को वहां नियुक्त किया गया. चंद्रशेखर की सरकार गिरने के बाद नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने. तब देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहद खराब होती जा रही थी. देश का सोना गिरवी रखने तक की नौबत आ गई थी. ऐसे में अगला वित्त मंत्री कौन होना चाहिए? लंबा मंथन हुआ और फिर डॉ. मनमोहन सिंह को नया वित्त मंत्री बनाया गया. नरसिम्हा राव और मनमोहन की जोड़ी ने अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए रुपए के अवमूल्यन समेत कई बड़े कदम उठाए. फिर आम बजट का वक्त आया, जिसमें मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की शुरुआत करने वाला ऐतिहासिक कदम उठाया. 1991 से 1996 तक वे नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे.

2. लाइसेंस राज खत्म किया

डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 में वित्त मंत्री रहते हुए ऐसी पॉलिसी बनाईं, जो देश की इकोनॉमी के लिए मील का पत्थर साबित हुईं. इन पॉलिसी ने लाइसेंस राज को खत्म कर दिया. अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोल दिया और ग्लोबलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन और उदारीकरण के एक ऐसे युग की शुरुआत की, जिसने देश की दिशा को हमेशा के लिए बदल दिया.

जुलाई 1991 में वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने भारत के सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना किया था और अपनी सूझ-बूझ से इससे देश को निकाला था. ये ऐसा समय था जब विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो गया था. देश में महंगाई दर कंट्रोल से बाहर हो गई थी. हालात यहां तक खराब हो गए थे कि देश दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया था. उस समय केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार थी और आर्थिक संकट के बीच भारतीय करेंसी रुपया क्रैश हो चुका था. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ये 18% तक लुढ़क गया था. खाड़ी युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमत आसमान पर पहुंच गई थी. भारत के पास महज 6 अरब डॉलर का फॉरेक्स रिजर्व बचा था, जो ज्यादा से ज्यादा दो हफ्ते के लिए ही काफी था. राजकोषीय घाटा करीब 8 फीसदी और चालू खाता घाटा 2.5 फीसदी पर पहुंच गया था.

1991 के आम बजट में बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण के लिए बड़े ऐलान किए. कॉर्पोरेट टैक्स की दरों को 5 पॉइंट बढ़ाकर 45% कर दिया. आयात शुल्क को 300% से घटाकर 50% किया. सीमा शुल्क को 220% से घटाकर 150% किया. आयात के लिए लाइसेंस प्रक्रिया को आसान बनाया. निजी कंपनियों को आयात की स्वतंत्रता दी गई. विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई गई. बजट में कॉरपोरेट टैक्स बढ़ाने और TDS की शुरुआत का ऐलान भी किया. म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) में प्राइवेट सेक्टक की भागीदारी को परमिशन देने का काम किया.

 3. RTI से लेकर रोजगार गारंटी तक बड़े फैसले लिए

डॉ. मनमोहन सिंह का कार्यकाल कई ऐतिहासिक सुधारों और योजनाओं का साक्षी रहा. सूचना के अधिकार (RTI) से लेकर रोजगार के अधिकार (MGNREGA) तक और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) से आधार कार्ड (UIDAI)  तक जैसे देश की तस्वीर और देशवासियों की तकदीर बदलने वाले फैसले उनके दस्तखतों से हुए. इन दूरगामी योजनाओं की शुरुआत सिंह के कार्यकाल में हुई. ये सभी उनके नेतृत्व और दूरदर्शिता की महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं.

सूचना का अधिकार (RTI) साल 2005) में आया. इस कानून ने नागरिकों को सरकारी जानकारी तक पहुंचने का अधिकार दिया. सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने और भ्रष्टाचार को उजागर करने लिए सरकार RTI लेकर आई. RTI ने नागरिकों को लोकतंत्र में सशक्त भूमिका निभाने का अधिकार दिया.

रोजगार का अधिकार यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) भी 2005 में लाया गया. यह योजना ग्रामीण परिवारों को रोजगार की गारंटी देती है. यह दुनिया की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में से एक है. इस योजना ने ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया. गरीब तबके के लोगों को आर्थिक सुरक्षा दी.

डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) को सरकारी योजनाओं के लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में ट्रांसफर करने के लिए लाया गया. इस योजना का उद्देश्य भ्रष्टाचार को रोकना और बिचौलियों की भूमिका खत्म करना था. DBT ने सरकारी योजनाओं को पारदर्शी और प्रभावी बनाया.

आधार कार्ड (UIDAI) योजना 2009 में आई. आधार कार्ड भारतीय नागरिकों को एक यूनिक डिजिटल पहचान देता है. यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) की स्थापना मनमोहन के कार्यकाल में हुई. आधार ने डिजिटल इंडिया की नींव रखी. सरकारी लाभों और सेवाओं को सटीक रूप से वितरित करने में मदद मिली.

4. जब भंवर में फंसा देश तो मनमोहन ने निकाला

मनमोहन सिंह 10 साल (2004 से 2014) देश के प्रधानमंत्री रहे. उन्हें एक्सीडेंट प्राइम मिनिस्टर भी कहा गया. लेकिन उन्होंने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया. उनके कार्यकाल में एक वक्त ऐसा आया, जब पूरी दुनिया बड़े भंवर में फंस गई. 2008 की वैश्विक मंदी ने बड़ी-बड़ी ताकतों को हिलाकर रख दिया था. यह हालात इसलिए बने, क्योंकि अमेरिका के रियल स्टेट और बैंकिंग सेक्टर में बड़ी गड़बड़ियां उभरकर सामने आई थीं. लीमैन ब्रदर्स समेत कई बड़े ग्लोबल बैंक ढह गए. मनमोहन सिंह ने उस चुनौतीपूर्ण वक्त से भारतीय अर्थव्यवस्था को जिस तरह बचाया, उसकी तारीफ पूरी दुनिया में हुई.

5. न्यूक्लियर डील को मुकाम तक पहुंचाया

साल 2008 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता हुआ. उस समय देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे. राजनीतिक दलों के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते के लिए बातचीत को आगे बढ़ाया. तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मदद से डॉ. सिंह कुछ दलों को मनाने में सफल रहे और उन पार्टियों ने परमाणु समझौते का विरोध करना छोड़ दिया. हालांकि, वामपंथी दलों ने इस डील का पुरजोर विरोध किया और सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. समाजवादी पार्टी ने पहले वाम मोर्चे का समर्थन किया, लेकिन बाद में उसने अपना रुख बदल लिया. सिंह की सरकार को विश्वास की परीक्षा से गुजरना पड़ा.

मनमोहन और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 18 जुलाई, 2005 को समझौते की रूपरेखा पर एक संयुक्त घोषणा की और यह औपचारिक रूप से अक्टूबर 2008 में लागू हुआ. यह भारत के लिए एक बड़ी जीत थी. परमाणु समझौते पर सिंह ने जो सख्त रुख अपनाया, इसने भारत और अमेरिका को एक-दूसरे के करीब लाने में भी मदद की और जिस तरह से उन्होंने 2008 की आर्थिक मंदी के दौरान देश को आगे बढ़ाया, इसका फायदा उन्हें 2009 के लोकसभा चुनाव में मिला और एक बार फिर UPA की सरकार आ गई. यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक कदम माना गया.

6. देश में लाए आर्थिक स्थिरता

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 8-9% तक पहुंची. वैश्विक आर्थिक संकट (2008) के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा और भारत वैश्विक आर्थिक शक्ति बनकर उभरा. डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस पर सब्सिडी में सुधार लाए. उन्होंने ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों की शुरुआत की. इसके अलावा, शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में लेकर आए और 6-14 साल के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी मिली. स्वास्थ्य क्षेत्र में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) शुरू किया गया. साल 2013 में खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाया गया, जिसने गरीबों को सस्ता अनाज सुनिश्चित किया.

7. जब विवादों से घिरी सरकार

मनमोहन के कार्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम, कोलगेट, और कॉमनवेल्थ घोटाले जैसे विवाद सामने आए और सरकार इन विवादों में बुरी तरह घिर गई. हालांकि, उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर कभी सवाल नहीं उठा. उनकी नीतियां दीर्घकालिक विकास और स्थिरता पर केंद्रित थीं. प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनकी जीवनशैली बेहद साधारण रही.

8. वैश्विक नेता के तौर पर मजबूत पकड़ बनाई…

ग्लोबल स्तर पर मनमोहन की पहचान एक मजबूत नेता के रूप में रही है. कई मौकों पर उन्होंने अपने इरादे भी जाहिर किए. जब अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील की बात आई तो सरकार पर संकट की भी फिक्र नहीं की. उन्होंने ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग को मजबूत किया. चीन और अमेरिका के साथ संबंध रखे और भारत की स्थिति को वैश्विक मंच पर मजबूती दिलाई. चीन के साथ सीमा विवाद खत्म करने की कोशिश की और 40 साल से ज्यादा समय से बंद नाथू ला दर्रा फिर से खोलने के लिए समझौता किया. साल 2008 का मुंबई हमला सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती बनकर सामने आया. मनमोहन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक कदम उठाए और पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया जारी रखी.

9. विदेशी निवेशकों के लिए खोले दरवाजे

मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) के लिए भारत के दरवाजे खोले. उन्होंने भारतीय बाजार को विदेशी निवेशकों के लिए खोला. इससे भारत में पूंजी प्रवाह बढ़ा और औद्योगिक विकास तेज हुआ. इसके साथ ही रुपये का अवमूल्यन हुआ और रुपये को नियंत्रित विनिमय दर से मुक्त किया.

भारत निर्माण योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, बिजली, पानी, सिंचाई, और दूरसंचार जैसी बुनियादी सेवाओं को मजबूत करने के लिए यह योजना शुरू की गई. यह योजना ग्रामीण आधारभूत संरचना को सुधारने में महत्वपूर्ण रही.

10. मनमोहन का कैसा रहा सार्वजनिक जीवन?

1971-1991 तक मनमोहन ने सरकार के विभिन्न आर्थिक और वित्तीय विभागों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
1982-1985 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और 1985-1987 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे.
1991-1996 तक वित्त मंत्री रहे. पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहते हुए उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को आर्थिक संकट से उबारा.
1996-2004 तक राज्यसभा और विपक्ष में रहे. इस दरम्यान में वे कांग्रेस के मुख्य आर्थिक रणनीतिकार की भूमिका में रहे.
2004-2014 तक प्रधानमंत्री रहे. उन्होंने भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में 10 वर्षों तक देश का नेतृत्व किया.
2014-2024 तक राज्यसभा सदस्य और पार्टी के मार्गदर्शक बने रहे. मनमोहन 1971 से 2024 तक (करीब पांच दशक) तक सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहे.

मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था. अब यह हिस्सा पाकिस्तान में है. पंजाब यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से मास्टर्स किया और ऑक्सफॉर्ड से डी फिल किया. उनका बचपन बेहद साधारण रहा. विभाजन से पहले उनके गांव (गाह) में ना बिजली थी, ना पानी और ना ही स्कूल. वे मीलों चलकर पढ़ाई करने जाते थे और मिट्टी के तेल के दीये की रोशनी में पढ़ाई करते थे. 14 साल की उम्र में सिंह का परिवार विभाजन के बाद अमृतसर चला गया

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Author: VS NEWS DESK

pradeep blr

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