उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और विपक्षी समाजवादी पार्टी (सपा), दोनों ही दलों के लिए नाक का सवाल बन चुके इन उपचुनावों में एक सीट ऐसी भी है जहां के मतदाता लोकल चेहरे की बजाय बाहरी उम्मीदवार पर भरोसा करते आए हैं. यह सीट है मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विधानसभा सीट. मीरापुर विधानसभा सीट से पिछले पांच दशक से कोई लोकल नेता चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंच सका है.
भोकरहेड़ी, मोरना और फिर मीरापुर हुआ नाम
मीरापुर विधानसभा सीट के अतीत की बात करें तो यह सीट पहले सुरक्षित हुआ करती थी और तब इसका नाम था भोकरहेड़ी विधानसभा. बाद में यह सीट सामान्य हो गई और नाम बदलकर मोरना हो गया. 2012 के विधानसभा चुनाव से इस सीट का नाम मीरापुर हो गया. इस विधानसभा सीट का नाम दो बार बदला, सुरक्षित से सामान्य तक का सफर किया और साथ ही साथ चले कई गजब संयोग भी. एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों को इस क्षेत्र की जनता ने विधानसभा भेजने का काम किया.
परिवार की तीन पीढ़ियों ने किया प्रतिनिधित्व
मीरापुर विधानसभा सीट का एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों ने विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया. यूपी के पहले डिप्टी सीएम बाबू नारायण सिंह इस सीट से विधायक रहे थे. बाबू नारायण सिंह के पुत्र और पोते ने भी विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया और संयोग देखिए, दोनों ही फिर संसद भी पहुंचे. बाबू नारायण सिंह के बेटे संजय चौहान सपा के टिकट पर साल 1996 मोरना (अब मीरापुर) विधानसभा सीट से विधायक निर्वाचित हुए थे.
साल 2022 के यूपी चुनाव में सपा की अगुवाई वाले गठबंधन से राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के टिकट पर संजय चौहान के पुत्र चंदन चौहान विधायक निर्वाचित हुए. संजय चौहान भी सांसद रहे थे और अब चंदन चौहान के भी संसद सदस्य निर्वाचित होने की वजह से ही यह सीट रिक्त हुई है. दोनों ही पिता-पुत्र बिजनौर सीट से लोकसभा चुनाव जीते.
59 साल में विधायकी नहीं जीता कोई लोकल
राजनीतिक दलों के लिए प्रयोगशाला रहे मीरापुर विधानसभा सीट पर 1985 से अब तक, कुल 11 विधायक चुने गए हैं लेकिन कोई भी लोकल नेता विधायकी नहीं जीत सका है. मुजफ्फरनगर जिले के साथ ही दूसरे जिलों के नेता भी इस सीट से चुनाव लड़े और जीतकर विधानसभा भी पहुंचे लेकिन इन वर्षों में जनता ने किसी लोकल को लखनऊ नहीं भेजा. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीते मौलाना जमील मीरापुर विधानसभा क्षेत्र के ही टंडेढ़ा गांव में रहते हैं लेकिन वह भी मूल रूप से देवबंद के जहीरपुर गांव निवासी हैं.
साल 2017 के यूपी चुनाव में बीजेपी ने अवतार भड़ाना को टिकट दिया था. अवतार मीरापुर विधानसभा क्षेत्र छोड़िए, मुजफ्फरनगर जिले के भी निवासी नहीं थे. हालांकि, 2022 में बीजेपी ने नया उम्मीदवार दिया. इस बार बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए की ओर से आरएलडी की मिथिलेश पाल उम्मीदवार हैं. मिथिलेश के सामने सपा ने पूर्व सांसद कादिर राणा की पुत्रवधु सुम्बुल राणा को उम्मीदवार बनाया है.
कादिर राणा भी इस सीट से विधायक रहे हैं. कादिर साल 2007 में लोक दल के सिंबल पर मोरना (अब मीरापुर) विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे. इस बार के उपचुनाव में भी सपा और आरएलडी, दोनों ही दलों ने ट्रेंड के अनुरुप बाहरी उम्मीदवार उतारे हैं. एडवोकेट चंद्रशेखर की अगुवाई वाली आजाद समाज पार्टी ने जाहिद हुसैन और बहुजन समाज पार्टी ने शाहनजर के रूप में लोकल चेहरों पर दांव लगाया है. इस बार ये ट्रेंड टूटेगा या बरकरार रहेगा, ये देखने वाली बात होगी.
1985 से अब तक ये नेता रहे विधायक
बात साल 1985 से अब तक हुए चुनावों की करें तो इस सीट से साल 1985 में कांग्रेस के साईदुज्जमा विधायक निर्वाचित हुए थे. साल 1989 में जनता दल के अमीर आलम, 1991 और 1993 में बीजेपी के रामपाल सैनी, 1996 में सपा के संजय सिंह, 2002 में बसपा के राजपाल सैनी, 2007 में लोकदल से कादिर राणा, 2009 में लोकदल से मिथलेश पाल, 2012 में बसपा के मौलाना जमील, 2017 में बीजेपी के अवतार सिंह भड़ाना और 2022 में लोकदल के चंदन सिंह चौहान विधायक रहे हैं.
Author: VS NEWS DESK
pradeep blr