Royal Enfield Flying Flea: दशकों की लीगेसी लिए हुए ये नाम (Flying Flea) आज एक बार फिर से चर्चा में है. दरअसल, बंदूक बनाने से लेकर बाइक निर्माण तक का सफर तय करने वाली रॉयल एनफील्ड ने बीते कल आधिकारिक तौर इलेक्ट्रिक व्हीकल सेग्मेंट में एंट्री की है.
गोलियों की गड़गड़ाहट… जंगल के बीच मची अफरा तफरी और चारों तरफ सैनिकों की भगदड़! इस जंगी माहौल से थोड़ी दूर आसमान में उड़ते प्लेन से पैराशूट में बंधा मजबूत लोहे का एक पिजड़ा (केज़) गिरता है. जिसे देखकर सैनिकों का एक दल उस ओर दौड़ पड़ता है. मौके पर पहुंच कर लोहे के उस पिंजड़े में लगा महज एक सिंगल विंग नट खोला जाता है और सैनिकों के हाथ में एक जबरदस्त और बेहद ही हल्की मोटरसाइकिल आ जाती है…!
रॉयल एनफील्ड की फ्लाइंग फ्ली किसी योद्धा की तरह जंग के मैदान में उतरती थी. जमीन पर आने के बाद बाइक को पिजड़े से बाहर निकालना था और हैंडलबार को 90 डिग्री घुमा कर किकस्टार्ट करके आगे बढ़ जाना था… ये सबकुछ पलक झपकते होता था और इस एक्शन के लिए सिपाहियों को बाकायदा ट्रेनिंग दी गई थी. ये पूरा मामला महज कुछ सेकंड का था. सैनिक बिजली की रफ्तार से पिंजड़े से बाइक को बाहर निकालते और जंग के मैदान में दौड़ पड़ते थें.
ये दृश्य किसी फिल्म का नहीं बल्कि द्वितीय विश्व युद्ध (1939–1945) के उस जंगी माहौल का है, जहां पर रॉयल एनफील्ड की फ्लाइंग फ्ली (Flying Flea) मोटरसाइकिल को पैराशूट के जरिए दुश्मन के इलाके में घुसपैठ करने और मैसेंजर्स के इस्तेमाल के लिए उतारा जाता था. महज 50 किग्रा वजनी इस मोटरसाइकिल को ख़ास तौर पर युद्ध की परिस्थितियों के अनुसार डिज़ाइन किया गया था.
फिर हुई है Flying Flea की वापसी:
दशकों की लीगेसी लिए हुए ये नाम (Flying Flea) आज एक बार फिर से चर्चा में है. दरअसल, बंदूक बनाने से लेकर बाइक निर्माण तक का सफर तय करने वाली रॉयल एनफील्ड ने बीते कल आधिकारिक तौर इलेक्ट्रिक व्हीकल सेग्मेंट में एंट्री की है. अपनी इस आमद को दर्ज कराने के लिए कंपनी ने ‘फ्लाइंग फ्ली’ को अपने EV ब्रांड के तौर पर लॉन्च किया है. जिसके तहत कंपनी ने इटली के मिलान शहर में दुनिया के सामने अपनी पहली इलेक्ट्रिक बाइक Flying Flea C6 को पेश किया है.
कैसे शुरू हुई Flying Flea की कहानी:
फ्लाइंग फ्ली एक लाइटवेट मोटरसाइकिल थी, और इसे Royal Enfield ने ब्रिटिश वार ऑफिस (जो कि वार डिपार्टमेंट के अन्तर्गत आता था) के लिए तैयार किया था. इस बाइक का इस्तेमाल युद्ध के दौरान दुश्मन के सीमा के आस पास के इलाकों में सैनिकों द्वारा संदेश पहुंचाने और खराब रास्तों पर आसानी से ट्रांसपोर्टेशन के लिए किया जाता था.
फ्लाइंग फ्ली की कहानी साल 1938 से शुरू होती है जब जर्मन अधिकारियों ने ड्च फ्रेंचाइजी DKW RT100 बाइक्स की आपूर्ति को रोक दिया. नाज़ियों ने DKW के डच डीलर, आर एस स्टोकविस एंड ज़ोनन पर दबाव डाला कि वह अपने यहूदी निदेशकों को नौकरी से निकाल दे नहीं तो उन्हें अपनी DKW फ़्रैंचाइज़ी से हाथ धोना पड़ेगा.
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इस यहूदी-विरोधी दबाव के आगे झुकने के बजाय, कंपनी ने तुरंत इंग्लैंड में रॉयल एनफील्ड से संपर्क किया और कंपनी को निर्देशित किया गया कि वो ऐसी बाइक का निर्माण करें जिनका प्रयोग सेना द्वारा किया जा सके. बताया जाता है कि इसके लिए डच डीलर ने रॉयल एनफील्ड को एक RT100 बाइक भेजी थी. ताकि इसी बाइक को रिवर्स-इंजीनियर करके फिर से तैयार किया जाए.
टेड पार्डो ने शुरू किया काम:
रॉयल एनफील्ड के उस वक्त के मुख्य डिजाइनर, टेड पार्डो ने इस नई बाइक पर तत्काल काम करना शुरू कर दिया. बाइक के फ्रेम और फोर्क्स की नकल की, लेकिन इंजन की क्षमता 98 से बढ़ाकर 126 सीसी कर दिया. टेड के अथक प्रयास के बाद जो बाइक सामने आई वो काफी बेहतर नज़र आ रही थी.
दिलचस्प बात ये थी कि बाइक का वजन केवल 56 किग्रा था और ये बाइक डेढ़ गैलन फ्यूल से 35 से 40 मील प्रति घंटे की रफ्तार से लगभग 150 मील की दूरी तय कर सकती थी. इसमें 3-स्पीड हैंड-चेंज गियर दिए गए थें. इसके इंजन की ख़ास बात ये भी थी कि ये खराब क्वॉलिटी के फ्यूल पर भी आसानी से चल सकता था.
कंपनी ने इस बाइक को ‘रॉयल बेबी’ नाम दिया और इसके दो प्रोटोटाइप को अप्रैल 1939 में रॉटरडैम में दिखाया. इसके बाद 1942 के दौरान वार ऑफिस ने कंपनी को 20 मोटरसाइकिलों का ऑर्डर दिया ताकि उनकी टेस्टिंग की जा सके. ये बाइक्स 1939 के उन्हीं बाइक्स के डिजाइन पर बेस्ड थीं जिन्हें कंपनी पहले दिखा चुकी थी. इनका लुक और डिज़ाइन काफी हद तक वैसा ही था लेकिन कंपनी ने इसमें कुछ बदलाव किए थें. इनमें दाहिनी तरफ ब्रेक्स दिए गए थें और इनमें बहुत ही कम टूल और कॉम्पोनेंट्स का इस्तेमाल किया गया था.
जब इन बाइक्स की टेस्टिंग शुरू हुई तो वार ऑफिस के निर्देश पर इन बाइक्स में कुछ बदलाव किए गएं जैसे कि इनमें ट्वीन बॉक्स एग्जॉस्ट सिस्टम लगाया गया ताकि ये कम से कम आवाज करें. इसके अलावा इनमें फोल्डिंग किक स्टार्ट और हैंडलबार भी लगाया गया, जिसे आसानी से फोल्ड किया जा सकता था.
पहली बार आसमान से उतरी थीं बाइक्स:
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जैसे-जैसे जंग बढ़ती गई, मित्र देशों की सेना ने नॉर्मंडी में ऐतिहासिक डी-डे लैंडिंग की. ऐसा पहली बार था जब हवाई जहाज से बाइक्स को जमीन पर उतारा जा रहा था. बाइक्स के जमीन पर आते ही इन्हें लोहे के केज यानी पिंजड़ो से बाहर निकाला जाता और सेना के जवान इन्हें लेकर फ्रंट लाइन की तरफ दौड़ पड़ते. Royal Enfield की इस Flying Flea ने ऑपरेशन ‘मार्केट गार्डन’ के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जब मित्र देशों की सेना ने कई पुलों पर कब्जा करने के बाद नीदरलैंड के माध्यम से जर्मनी तक पहुंचने की कोशिश की थी.
Author: VS NEWS DESK
pradeep blr