एकनाथ संभाजी शिंदे, महाराष्ट्र की सियासत का वो नाम है, जो पिछले ढाई साल से सत्ता के केंद्र में है.
कभी ऑटोरिक्शा चलाने वाले एकनाथ शिंदे ने विधानसभा चुनाव से पहले तक बतौर मुख्यमंत्री महाराष्ट्र की सत्ता चलाई और चुनाव में जीत के बाद शिवसेना विधायक दल के नेता चुने गए हैं.
अजीत पवार एनसीपी के विधायक दल के नेता बने, लेकिन बीजेपी ने अभी तक अपने विधायक दल का नेता नहीं चुना है.
शिंदे की शिवसेना को महाराष्ट्र चुनाव में 57 सीटें मिली हैं. वहीं भारतीय जनता पार्टी को 132 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजीत पवार) 41 सीटों पर चुनाव जीती है.
जब से बीजेपी वाले महायुति गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला है, तभी से एक सवाल पूछा जा रहा है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा?
वर्तमान मुख्यमंत्री होने के नाते इस रेस में एकनाथ शिंदे का भी नाम शामिल है, लेकिन चुनाव से पहले बीजेपी समेत महायुति गठबंधन ने सीएम के तौर पर शिंदे के चेहरे पर आधिकारिक मुहर नहीं लगाई थी.
महाराष्ट्र में असली चुनौती
महाराष्ट्र में महायुति को बंपर जीत मिलते ही तीनों दलों की तरफ़ से सीएम पद को लेकर बयानबाज़ी सामने आने लगी थी.
23 नवंबर को नतीजे वाले दिन बीजेपी के एमएलसी प्रवीण दरेकर ने बयान दिया कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनना चाहिए.
दरेकर तब इस बात पर ज़ोर दे रहे थे कि जो पार्टी सबसे ज़्यादा सीटें जीतेगी, सीएम उसका होना चाहिए.
इस पर एकनाथ शिंदे का कहना था, “ऐसा तय नहीं हुआ था कि जिसकी ज़्यादा सीटें होंगी, उसका सीएम होगा. अंतिम आंकड़े आने के बाद सभी पार्टियां मिलकर नाम तय करेंगी.”
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी एकनाथ शिंदे की बात को दोहराया था और कहा कि सीएम के चेहरे पर कोई विवाद नहीं होगा और तीनों दल इस पर बैठकर फ़ैसला करेंगे.
सुनेत्रा पवार अजीत पवार की पत्नी और राज्यसभा सांसद हैं. जब महायुति गठबंधन को रुझानों में बढ़त मिल रही थी तो उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, “जो महाराष्ट्र की जनता चाहती है वही मैं चाहती हूं कि अजीत पवार मुख्यमंत्री बनें.”
तीनों पार्टियों के दावों से इतर महाराष्ट्र में सीएम पद के लिए किसका दावा सबसे मज़बूत है?
वरिष्ठ पत्रकार जयदेव डोले कहते हैं, “अगर राज्य में बीजेपी का व्यक्ति सीएम होता तो शायद परिस्थितियां अलग होतीं. सीटें भले ही बीजेपी की ज़्यादा हैं, लेकिन वो जीत का पूरा क्रेडिट नहीं लेंगे. शिवसेना के ओबीसी वोटर और मराठा वोटर को ध्यान में रखा गया तो शिंदे को फिर से सीएम बनाया जा सकता है. दूसरा ये भी हो सकता है कि तीनों पार्टियां मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल को लेकर समझौता कर लें और कार्यकाल तीनों में बांट दिया जाए.”
महाराष्ट्र में बीजेपी ने 149 सीटों पर चुनाव लड़ा और 132 सीटें जीतीं. यानी जीत का प्रतिशत 88 फ़ीसदी से अधिक.
शिवसेना ने 81 सीटों पर चुनाव लड़ा और 70 फ़ीसद से ज़्यादा स्ट्राइक रेट से 57 सीटें जीतीं. अजीत पवार की एनसीपी ने 59 सीटों पर चुनाव लड़ा और 41 सीटें जीतीं. एनसीपी का जीत प्रतिशत लगभग 70 फ़ीसदी रहा.
जीत के स्ट्राइक रेट के आधार पर तीनों पार्टियों ने ही अच्छा प्रदर्शन किया है.
राजनीति और आर्थिक दोनों ही नज़रिए से महाराष्ट्र एक महत्वपूर्ण राज्य है. राजनीति की नज़र से देखें तो महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 और राज्यसभा की 19 सीटें हैं.
देश की कुल जीडीपी में महाराष्ट्र अकेले लगभग 14 प्रतिशत का योगदान देता है. भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई भी महाराष्ट्र में है और इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरिंग में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 13.8 फ़ीसदी है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भी महाराष्ट्र अव्वल है.
वित्तीय वर्ष 2024-25 के पहली तिमाही में महाराष्ट्र का एफ़डीआई 70,795 करोड़ था. इन सब चीज़ों को ध्यान में रखते हुए हर दल चाहता है कि मुख्यमंत्री उनकी पार्टी से हो.
शिंदे का दावा कितना मज़बूत
2019 में उद्धव ठाकरे के नेतृ्त्व में शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. ढाई साल तक यह सरकार चली और फिर एकनाथ शिंदे ने बग़ावत कर दी.
तब शिंदे शिवसेना के 40 से ज़्यादा विधायक अपने साथ लाए थे और बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी. सरकार बनने के बाद शिंदे और उद्धव खुलकर एक-दूसरे के सामने आ गए थे.
चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को शिवसेना का वारिस और धनुष-बाण का चिह्न शिंदे को दिया, लेकिन असली ‘असली शिवसेना’ का सवाल जारी रहा.
शिंदे ने इस चुनाव में उद्धव ठाकरे (20 सीट) के मुक़ाबले बेहतर प्रदर्शन किया और असली शिवसेना के सवाल पर काफ़ी हद तक विराम चिन्ह लगा दिया है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में असली शिवसेना वाला मामला अभी लंबित है.
महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने इस साल जून में सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में ‘मुख्यमंत्री- मेरी लाडली बहन’ योजना शुरू की थी.
इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं. जानकारों के मुताबिक़, इस वर्ग ने ‘महायुति’ सरकार को सत्ता में लाने का काम किया है.
शिंदे कई मौक़ों पर लाडली बहन योजना का क्रेडिट लेने से भी नहीं चूके. चुनाव से पहले एकनाथ शिंदे ने कहा था कि कोई ‘माई का लाल’ लाडली बहना योजना बंद नहीं कर सकता है और चुनाव के बाद इसकी धनराशि को बढ़ाया जाएगा.
चुनाव में जीत के बाद रविवार को शिंदे लाडली बहना के लाभार्थियों से मिले और आश्वासन दिया कि नई सरकार भी महिला हितों को ध्यान में रखकर काम करेगी.
वरिष्ठ पत्रकार जीतेंद्र दीक्षित कहते हैं, “शिवसेना की तरफ़ से कहा जा रहा है कि लाडली बहना, बतौर सीएम शिंदे के चेहरे के साथ चुनाव में जाना, गठबंधन धर्म मज़बूती से निभाना उनके पक्ष में हैं इसलिए बिहार मॉडल की तर्ज़ पर महाराष्ट्र में भी सीएम एकनाथ शिंदे को बनाना चाहिए. लेकिन आंकड़ों को देखें तो बीजेपी एनसीपी (अजीत पवार) के साथ मिलकर सरकार बना सकती है और शिंदे की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी. फिर बीजेपी शिंदे को मुख्यमंत्री क्यों बनाएगी. एनसीपी तो कह चुकी है कि बीजेपी का सीएम बने तो समर्थन देगी.”
एकनाथ शिंदे और अजीत पवार महायुति का मराठा चेहरा हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे का मराठा के साथ मुख्यमंत्री का अनुभव उनके पक्ष में दिखता है.
वरिष्ठ पत्रकार जयदेव डोले कहते हैं, “एकनाथ शिंदे के सीएम बने रहने के पक्ष में कुछ मज़बूत कारण दिखते हैं. पहला कुछ ही दिनों में स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं और शिंदे महायुति के लिए इसमें एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं. दूसरा शिंदे का मराठा चेहरा होना. अजीत पवार भी मराठा चेहरा हैं, लेकिन उनकी छवि की तुलना में शिंदे की छवि बेदाग है. एकनाथ शिंदे यह भी कह सकते हैं कि मेरे चेहरे या मेरे काम पर ही चुनाव जीते हैं.”
शिवसेना को बीजेपी की तुलना में कम सीटें मिली हैं, लेकिन बिहार में बीजेपी के पास सीटें ज़्यादा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. ऐसे में यह तर्क भी दिया जा सकता है कि क्या महाराष्ट्र में भी बिहार वाला फॉर्मूला दोहराया जा सकता है. साथ ही 2022 में भी शिंदे कम सीटें होने के वाबजूद मुख्यमंत्री बने थे.
जीतेंद्र दीक्षित कहते हैं, “तब परिस्थितियां अलग थीं. मराठा आरक्षण से निपटने के लिए बीजेपी को मराठा चेहरा चाहिए था लेकिन लोकसभा चुनाव में तो मराठा चेहरे का फ़ायदा नहीं हुआ और बीजेपी को नुक़सान उठाना पड़ा. बीजेपी भी इसी बात को दोहरा रही है. जहां तक बिहार की बात है वहां बीजेपी के पास सीमित विकल्प हैं. लेकिन महाराष्ट्र में बीजेपी को सिर्फ 13 सीटों की ज़रूरत है और ये संख्या बिना शिंदे के भी पूरी हो सकती है.”
ऑटो चलाने से लेकर सीएम की कुर्सी तक
एकनाथ शिंदे का जन्म महाराष्ट्र के पहाड़ियों से घिरे सतारा ज़िले के दरे गांव में हुआ लेकिन रोज़गार की तलाश में उनका परिवार भीड़-भाड़ वाले ठाणे में आ पहुंचा.
किसान मराठा परिवार में जन्मे एकनाथ शिंदे ने आर्थिक परिस्थितियों के चलते बचपन में अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए और 12वीं तक आते-आते उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
बचपन में शिंदे ने परिवार की आर्थिक मदद के लिए अलग-अलग तरह के काम किए.
इनमें फिशरी फैक्ट्री में काम करने से लेकर ऑटो चलाने का काम भी किया. इस दौरान एकनाथ शिंदे ने आर्मी में शामिल होने का भी सोचा था.
एक इंटरव्यू में शिंदे ने इसको लेकर बताया, “मैं काम के दौरान सेना से भी जुड़ा था और मेरा ट्रेनिंग सेंटर लखनऊ था. मैंने अपने एक दोस्त को वादा किया था कि तुम्हारी बहन की शादी में आऊंगा. उस शादी में मैं गया और वहां मुझे दो दिन की देरी हो गई. फिर मैं ट्रेनिंग सेंटर में पहुंचा तो उन्होंने कहा कि आपको मुंबई वापस जाकर तारीख़ बदलवानी पड़ेगी. जब मैं वापस मुंबई आया तो यहां शायद सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे, फिर मैं यहीं रह गया और बालासाहेब का शिवसैनिक बन गया.”
शिंदे ने 18 साल की उम्र में शिवसेना के साथ अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था. तब शिवसेना के ठाणे अध्यक्ष आनंद दिघे उन्हें राजनीति में लेकर आए थे.
शिंदे ने अपनी शुरुआत ठाणे शहर के औद्योगिक क्षेत्र वागले स्टेट से बतौर मज़दूरों के नेता के रूप में की थी. 1997 में आनंद दिघे ने शिंदे को ठाणे नगर निगम में टिकट दिया और जीतकर पार्षद बने.
पहली ही कोशिश में शिंदे ने न केवल नगर निगम का यह चुनाव जीता, बल्कि वे ठाणे नगर निगम के हाउस लीडर भी बन गए.
उसके बाद 2004 में उन्होंने ठाणे विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और यहां भी पहली ही कोशिश में जीतने में कामयाब रहे. इसके बाद 2009 से 2024 तक वो लगातार कोपरी-पचपाखड़ी विधानसभा क्षेत्र के विधायक चुने गए हैं.
साल 2015 से 2019 तक शिंदे राज्य के लोक निर्माण मंत्री रहे. फिलहाल शिंदे एक सफल शिवसेना के नेता हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि उनके नेतृत्व में शिवसेना का भविष्य क्या होगा.
Author: VS NEWS DESK
pradeep blr